Wednesday 24 January 2018

Padmavati - Has Supreme Court Erred

पद्मावती - क्या हमारे न्यायलय ने कोई भूल तो नहीं कर दी ?

यह कौन सा न्याय है जिसमें मानवीय मूल्यों, आदर्शों और प्रेरणा स्त्रोतों की कोई गणना नहीं है | जिसमें इतिहास का कोई महत्व नहीं है | जिसमें हमारी अस्मिता का भी कोई महत्त्व नहीं है | ऐसा लगता है भौतिक्तावाद की आंधी में हमारा न्याय भी दिक्भ्रमित हो गया है ? 

1) क्या एक व्यक्ति की सनक और पैसों की भूख को अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देकर लाखों लोगों की आस्था का वध न्यायसंगत होगा ?

2) क्या पद्मावत का प्रदर्शन कुछ और दिन नहीं रोका जा सकता था ? ऐसा करने से किसको हानि होती ? क्या यह  न्यायालय का अहम् तो नही है ? अहम् से हमारा विवेक खो जाता है और तब हम सही निर्णय करने की स्थिति  में नहीं रहते |

3) क्या कानून और व्यवस्था के सन्दर्भ में राज्य सरकारों की सम्मति की भी आवश्यकता नहीं है ? कहीं यह कार्यपालिक के कार्य में दखल नहीं है ?

न्यायलय के प्रति सम्मान केवल संविधान से नही पैदा किया जा सकता | यह उसे अपने कार्य से अर्जित करना होगा | 

न्यायलय को न्याय की अवधारणा पर एक बार पुन: विचार करना होगा |

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