पद्मावती - क्या हमारे न्यायलय ने कोई भूल तो नहीं कर दी ?
1) क्या एक व्यक्ति की सनक और पैसों की भूख को अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देकर लाखों लोगों की आस्था का वध न्यायसंगत होगा ?
2) क्या पद्मावत का प्रदर्शन कुछ और दिन नहीं रोका जा सकता था ? ऐसा करने से किसको हानि होती ? क्या यह न्यायालय का अहम् तो नही है ? अहम् से हमारा विवेक खो जाता है और तब हम सही निर्णय करने की स्थिति में नहीं रहते |
3) क्या कानून और व्यवस्था के सन्दर्भ में राज्य सरकारों की सम्मति की भी आवश्यकता नहीं है ? कहीं यह कार्यपालिक के कार्य में दखल नहीं है ?
न्यायलय के प्रति सम्मान केवल संविधान से नही पैदा किया जा सकता | यह उसे अपने कार्य से अर्जित करना होगा |
न्यायलय को न्याय की अवधारणा पर एक बार पुन: विचार करना होगा |
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