Three Games going on in Man's Life
Dated: 01/07/2016
जीवन एक त्रिस्तरीय खेल है – प्रथम खेल वह है जो हम दूसरों के लिए
खेलते हैं, दूसरा खेल वह है जो हम अपने लिए खेलते हैं और तीसरा खेल वह है वह जो भगवान
हमारे साथ खेलते हैं |
प्रथम खेल हम परिस्थियों के अनुसार खेलते हैं परन्तु यह एक आवरण
के समान होता है जिसकी ओट में हमारा दूसरा खेल चलता रहता है | इस खेल के दर्शक नासमझ
नहीं होते, वे इसके पीछे छिपे खेल को समझ जाते हैं; परन्तु वे इसके विषय में चुप
रहते हैं या कभी-कभी मुखर हो कह देते हैं | इसका अंतराल छोटा होता है | शीघ्र ही
पटाक्षेप हो जाता है, पात्र बदल जाते हैं, और फिर एक नया खेल आरम्भ हो जाता है |
दूसरा खेल हम अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए खेलते हैं | यह जीवन पर्यन्त
चलता रहता है | यह हमें बहुत प्रिय होता है और यह तब तक चलता रहता है जब तक हमारी शक्ति
शेष रहती है और हमारे जीवन का पटाक्षेप नहीं हो जाता | इस खेल की उपलब्धियां हमारे
जीवन के साथ ही समाप्त हो जाती हैं क्योंकि किसी और की इसमें कोई रूचि नहीं होती |
तीसरा खेल के विषय में हम अधिकतर अनभिज्ञ होते हैं | इसको जानने के
लिए हमें निर्लिप्त बुद्धि और निष्कपट हृदय की आवश्यकता होती है | यह खेल अनेकों जन्मों
तक चलता रहता है | पहला और दूसरा खेल इस तीसरे खेल के आवरण मात्र होते हैं | पहले
और दूसरे खेल में व्यस्त और तीसरे के प्रति अनजान हम इसके मार्ग में अनेकों अवरोध पैदा
करते रहते हैं | यही हमारे दु:ख और कष्टों का मूल कारण होता है |
जब तक हम तीसरे खेल को नहीं समझ लेते तब तक यह यह तीनों खेल चलते रहेंगे, क्योकि पहले दो खेलों के पीछे ही तीसरा खेल खेला जाता है |
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